Maharana Pratap jayanti,इतिहास,जीवनी एवंम वीरता कि कहानी

Maharana Pratap Singh

भारतीय इतिहास के नायक वीर Maharana Pratap jayanti : भारत सदियो से ही वीरो कि भुमि रहा है। यहा की पावण भुमि , बातावरण , सभ्यता, संस्कार और समृद्ध संस्कृति इस दैश कि दरोहर है जो पूरी दुनिया के लिए ऊर्जा और प्रेरणा का एक स्रोत है।

भारत मे ऐसी कई ब्यक्तित्वो का जन्म हुया जो आपने आपने समयकाल मे अलग अलग क्षेत्रो मे आपनी महारत दिखाई।चाहै वह विज्ञान हो या संस्कृति, अर्थशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र अध्यात्मिकता हो याफिर सैन्य विज्ञान हर क्षेत्रो मे उन्हौने एक से बडकर एक मिसाले कायेम की है।

जब जब इस दैशमे संकट का बादल मन्डराया तब तब दैश के भीरोने साहसता के साथ उनका मुकाबला किया है। चाहै परिस्थिति कैसी भी रही हो उन्होने आपने दुश्मनो से कभी भी समझोता नही किया,

चाहे लरते लरते आपनी जिबन ही क्यो न देना पडे। और ऐसी एक यौय्धा महाराणा प्रताप सिंह जिने भारतीय इतिहास का अदम्य साहस और वीरता का प्रतीक माना जाता है।

महाराणा प्रताप का परिचय:

भारतीय इतिहास में मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह का नाम साहस, वीरता और अटूट संकल्प के प्रतीक के रूप में लोगों के दिलों में चमकता रहा है।

आप जानते होंगे कि महाराणा प्रताप, जिन्हें प्रताप सिंह के नाम से भी जाना जाता है, उन्होने सोलहवीं शताब्दी के दौरान राजस्थान के मेवाड़ राज्य पर शासन किया था।

Maharana Pratap jayanti

राष्ट्र निर्माण के प्रति उनके अदम्य साहस और अथक प्रयासों ने उन्हें न केवल अपने समय में बल्कि आने वाली पीढ़ियों के दिलों में भी एक श्रद्धेय और प्रेरणादायक व्यक्ति बना दिया।

तो इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको वीर महाराणा प्रताप सिंह के गौरवशाली इतिहास, उनके जीवनकाल, उनके संघर्ष की कहानी और उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत के बारे में विस्तार से बताएंगे।

Maharana Pratap jayanti, प्रारंभिक जीवन और स्वर्गारोहण:

उनकी प्रारंभिक जीवन कि बात की जाए तो महाराणा प्रताप 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में इनका जन्म हुया। महाराणा प्रताप, महाराणा उदय सिंह द्वितीय और रानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे।

छोटी उम्र से ही उन्होंने उल्लेखनीय शारीरिक शक्ति, साहस और नेतृत्व गुणों का प्रदर्शन किया। वंशानुक्रम के सिद्धांत के अनुसार , प्रताप को 1572 में अपने पिता के शासनकाल के बाद मेवाड़ का युवराज घोषित किया गया।

हल्दीघाटी का युद्ध

महाराणा प्रताप के जीवन के निर्णायक क्षणों में से एक हल्दीघाटी का युद्ध था, जो 18 जून, 1576 को लड़ा गया था। इस ऐतिहासिक युद्ध ने प्रताप और उनकी वफादार सेना को सम्राट अकबर के भरोसेमंद सेनापति, आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व वाली मुगल सेना के खिलाफ खड़ा कर दिया था।

सैनिकों कि संख्या में कमी होने और कई कठिन चुनौतियों का सामना करने के बावजूद भी, उन्हौने असाधारण युद्ध रणनीति का प्रदर्शन किया और अपने अटूट दृढ़ संकल्प के साथ अपने सैनिकों को प्रेरित किया और दुशमनो से बहादुरी से लड़ाई कि।

मुगल वंश के सामने आत्मसमर्पण करने से उनके दृढ़ इनकार और “मेवाड़” की संप्रभुता की रक्षा के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने उन्हें अपने लोगों की नज़र में एक महान देशभक्त नायक बना दिया।

हालाँकि लड़ाई प्रताप की सामरिक वापसी के साथ समाप्त हुई, लेकिन उन्होंने कभी भी मुगलों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया। मुगलों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी और मुगलों के सामने झुकने से इनकार कर दिया।

निर्वासन जीवन और गुरिल्ला युद्ध

हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपनी राजधानी चित्तौड़गढ़ के नष्ट हो जाने के कारण, महाराणा प्रताप और उनके परिवार को निर्वासन के लिए मजबूर होना पड़ा।

इस निर्वासन अवधि के दौरान, उन्होंने गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाई और मुगलों और उनके सहयोगियों के खिलाफ एक साथ निरंतर अभियान चलाया।

अरावली पर्वत के बीहड़ इलाके में रहते हुए, प्रताप के वफादार योद्धाओं का समूह, जिन्हें भील के नाम से जाना जाता था, दमनकारी मुगल शासन के खिलाफ लड़ाई में उनकी रीढ़ बन गए।

संसाधनों की कमी सहित प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद, प्रताप के दृढ़ संकल्प और रणनीतिक कौशल ने प्रतिरोध की भावना को जीवित रखा।

विरासत और प्रभाव

महाराणा प्रताप शारीरिक रुप से काफी मजबुत थे। लम्बाई मे वे करीबन 7॔ फीट 5॔॔ इंच के आसपास थे। उनकी इस विशाल ऊंचाई के साथ-साथ आंतरिक ऊर्जा और सहने की शक्ति मोहित करने बाली थे।

महाराणा प्रताप युद्धों के दौरान बाड़ी मात्रा में वजन उठाने के लिए जाने जाते थे। वह आपने साथ 360 किलोग्राम तक का वजन ले जा सकता था, जिसमें लगभग 80 किलोग्राम वजन वाला एक भाला, 208 किलोग्राम वजन वाली दो तलवारें और लगभग 72 किलोग्राम वजन वाला कवच शामिल था। इसके अतिरिक्त, उनका अपना वजन 110 किलोग्राम से अधिक था।

हालाँकि, वह अपने जीवनकाल में कभी भी चित्तौड़गढ़ पर कब्ज़ा नहीं कर पाए, लेकिन मुगलों के खिलाफ उनकी अथक लड़ाई ने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी।

लेकिन स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और विदेशी शासन के सामने झुकने से इनकार भावी पीढ़ियों के लिए प्रतिरोध और प्रेरणा का प्रतीक बन गया।

और इसीलिए आज पूरे भारत में इनको एक ऐसे महापुरुष के रूप में हृदय से याद किया जाता है जो देश के युवाओं में वीरता और बलिदान की भावना का प्रतीक है।

राणा प्रताप का यह राष्ट्रवादी रवैया अनगिनत लोगों को प्रेरित करता है और उन्हें हमेशा अपनी मातृभूमि के प्रति अखंडता, साहस और अटूट प्रेम के महत्व की याद दिलाता है।

महाराणा प्रताप की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?

कथित तौर पर उनकी मौत, 19 जनवरी 1597 को चावंड में एक शिकार के दौरान दुर्घटना में लगी चोट के कारण 56 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। इस दौरान उनके सबसे बड़े बेटे, अमर सिंह प्रथम ने उनका उत्तराधिकार का जिम्मा सम्भाला।

अपनी मृत्यु से पहले, प्रताप ने अपने बेटे से कहा कि वह कभी भी मुगलों के सामने न झुकें उनका ढटके मोकाविला करे और चित्तौड़ को वापस लाने का तौरजौड़ प्रयास करे।

निष्कर्ष

महाराणा प्रताप का इतिहास लचीलेपन, दृढ़ संकल्प और स्वतंत्रता के आदर्शों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की शक्ति का प्रमाण है। शक्तिशाली मुगल साम्राज्य के खिलाफ उनकी अथक लड़ाई और आक्रमणकारियों के सामने आत्मसमर्पण न करने की उनकी दृढ़ भावना आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

भारतीय इतिहास का यह महा नायक महाराणा प्रताप का नाम साहस, वीरता और अटूट देशभक्ति के प्रतीक के रूप में सदैव अंकित रहेगा।

FAQs


Q). महाराणा प्रताप के पुत्र का नाम क्या है?

A). महाराणा प्रताप के पुत्र का नाम अमर सिंह प्रथम था। वह इनके सबसे बड़े पुत्र थे और 19 जनवरी, 1597 को महाराणा प्रताप के मृत्यु के बाद मेवाड़ के शासक बने।

Q). महाराणा प्रताप का कद कितना था?

A). प्रसिद्ध राजपूत योद्धा और मेवाड़ के राजा, प्रताप सिंह अपने प्रभावशाली शारीरिक कद के लिए जाने जाते थे। ऐतिहासिक वृत्तांतों के अनुसार, उनकी लम्बाई करीब 7 फीट 5 इंच थी। और वह अपने समय के सबसे लंबे कद बाले व्यक्ति हुया करते व्यक्ति था।

Q). महाराणा प्रताप का पूरा नाम क्या था?

A). महाराणा प्रताप का पूरा नाम प्रताप सिंह प्रथम (महाराणा प्रताप सिंह सिसौदिया) था।

Q). महाराणा प्रताप की कुल कितनि पत्नियाँ थीं

A). महाराणा प्रताप की कुल 11 पत्नियाँ थीं। इन विवाहों से उनके कई बेटे और बेटियाँ हुईं, जिनमें अमर सिंह प्रथम उनके सबसे बडे बेटे थे।

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